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Wednesday, February 12, 2025

विवेक रंजन ने ‘अश्लील जोक्स’ को बताया ‘सोशल नॉर्मलाइजेशन’ का शिकार, फैंस से पूछे चुभने वाले सवाल

समय रैना के शो में यूट्यूबर-पॉडकास्टर रणवीर इलाहाबादिया के अश्लील जोक्स को लेकर लोगों में आक्रोश है. फिल्म निर्माता-निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी और बताया कि कॉमेडी के नाम पर अश्लीलता ‘सोशल नॉर्मलाइजेशन' की थीम से उपजा है. इसके साथ ही उन्होंने लोगों से कई चुभने वाले सवाल भी किए.  

विवेक रंजन की गिनती उन हस्तियों में की जाती है, जो न केवल गंभीर विषयों पर फिल्म का निर्माण करते हैं बल्कि मुखर होकर अक्सर अपनी बात सोशल मीडिया पर रखते भी नजर आते हैं. ऐसे में उन्होंने स्टैंड-अप कॉमेडी के नाम पर गाली-गलौज और अश्लीलता पर भी सहज अंदाज में राय रखी. इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर करते हुए विवेक रंजन ने कैप्शन में लिखा, “सोशल मीडिया पर इतनी नफरत और अश्लीलता क्यों? सामाजिक रूप से क्या स्वीकार्य है?”

शेयर किए गए वीडियो में अग्निहोत्री कहते नजर आए, “दोस्तों, आप सब जानते हैं कि स्टैंड-अप कॉमेडियंस आजकल चर्चा में हैं और लोग उन्हें कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग कर रहे हैं. फांसी की सजा ज्यादा हो जाएगी, लेकिन जो उन्होंने किया, उसका उन्हें सबक जरूर मिलना चाहिए क्योंकि यह सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि यह एक सामाजिक विषय है, लेकिन इसे राजनीति से जोड़ देना, अदालतों में घसीटना या भीड़ के हवाले कर देना भी एक तरह की विकृति को पार करने जैसा है.”

अग्निहोत्री ने दर्शकों से पूछा, “अब मैं आपसे एक सीधा सवाल पूछना चाहता हूं. अगर आपको बोरे भर-भर के पैसे सिर्फ गाली-गलौज करने, अश्लीलता फैलाने, दूसरों की बेइज्जती करने और समाज में विकृति को सामान्य बनाने के लिए दिए जाएं, तो क्या आप ऐसा करने से बचेंगे, क्या आप ऐसा नहीं करेंगे? भारत में 150 करोड़ लोग रहते हैं, कितने ऐसे होंगे जो इस प्रलोभन से बच पाएंगे? अगर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म समाज में नफरत और हिंसा फैलाने के पैसे दे, इंस्टाग्राम छोटे बच्चों को हाइपर-सेक्शुअलाइज करने के लिए भुगतान करे, फेसबुक झूठ और अंधविश्वास को बढ़ावा दे, यूट्यूब गाली-गलौज, अंधविश्वास और फर्जी धर्मगुरुओं को प्रमोट करे, लिंक्डइन फेक मोटिवेशनल स्पीकर्स को आगे बढ़ाए तो क्या आप चुप रहेंगे?”

विवेक रंजन ने प्रशंसकों को सरल तरीके से पूरा खेल समझाते हुए बताया, “यह एक पैसे का खेल. यह खेल कैसे चलता है? इसका तरीका बेहद सरल है. सबसे पहले एक सोशल मीडिया कंपनी किसी ऐसे व्यक्ति को चुनती है, जो प्रभावशाली ढंग से बोल सकता हो या वो उभरता चेहरा हो. उससे एक सनसनीखेज, मूर्खतापूर्ण या विवादास्पद बयान दिलवाया जाता है फिर सोशल मीडिया पर नकली अकाउंट्स और फैन क्लब्स उसे वायरल करने लगते हैं, जिससे लोगों को लगता है कि यह मुद्दा हर किसी की जुबान पर है. धीरे-धीरे यह व्हाट्सएप फॉरवर्ड्स में बदल जाता है फिर बड़े-बड़े इन्फ्लुएंसर्स इस पर चर्चा करने लगते हैं और आखिर में मीडिया इसे उठा लेती है.” 

उन्होंने आगे बताया कि मामला यहीं पर नहीं थमता बल्कि फिर तेजी से बढ़ता जाता है. टेलीविजन पर बड़े-बड़े लेखक, इतिहासकार, वैज्ञानिक समेत अन्य इस विषय पर बहस करते हैं, लिहाजा यह राजनीतिक और सामाजिक रूप से सबसे गर्म विषय बन जाती है. इस तरह से एक झूठ, अश्लील बात या अंधविश्वास से भरी चीज को मुख्यधारा में लाकर ‘सामान्य' बना दिया जाता है.”

उन्होंने आगे बताया कि वास्तव में ऐसी चीजों के पीछे ‘हाइपर-नॉर्मलाइजेशन' है. उन्होंने कहा, “हमारे आसपास जब हिंसा होती है, जब आतंकी किसी मासूम की हत्या कर देते हैं, जब बंगाल, तमिलनाडु या किसी अन्य जगह पर दंगे होते हैं, जब महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार होता है तब हमें झटका नहीं लगता, क्योंकि हमने इसे ‘सामान्य' मान लिया है. यह ‘हाइपर-नॉर्मलाइजेशन' है.”

समाज में फैल रही गंदगी के लिए अग्निहोत्री ने छोटे बच्चों के माता-पिता पर भी तंज कसा. इसके साथ ही उन्होंने सोशल मीडिया को सबसे बड़ा दुश्मन भी बताया, “जब हम दो साल के बच्चे को चुप कराने के लिए उसके हाथ में मोबाइल पकड़ा देते हैं, फिर चार साल का होते ही जब वह पहली बार गाली देता है, तो हमें आश्चर्य क्यों होता है? क्यों माता-पिता अपने बच्चों से डरते हैं? क्यों शिक्षक छात्रों से डरते हैं? क्यों समाज में हर कोई एक-दूसरे से डरने लगा है? इसका कारण यही है कि सोशल मीडिया अब हमारा सबसे बड़ा दुश्मन बन चुका है.”

गाली-गलौज, अश्लीलता को लेकर उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी बात की. उन्होंने कहा, “जो लोग आज स्टैंड-अप कॉमेडियंस की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत कर रहे हैं, उनसे मैं एक सवाल पूछना चाहता हूं. अगर कुछ दिनों के लिए पुलिस हट जाए और हर किसी को कुछ भी करने की स्वतंत्रता दे दी जाए, तो क्या होगा? अगर कोई आपको देख नहीं रहा, आपके पास एक चाकू है, तो क्या आप जाकर पूरे शहर के लोगों को मार डालेंगे? शायद नहीं. क्योंकि जैसे हिंसा नहीं करना भी एक स्वतंत्रता है, वैसे ही गाली और अश्लीलता से बचना भी एक स्वतंत्रता है. तो फिर क्यों अश्लीलता को बढ़ावा देने वालों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मजबूत मानी जाती है, जबकि शालीनता बनाए रखने वालों की स्वतंत्रता कमजोर पड़ जाती है?”

उन्होंने कहा, “अभी सब इन मुद्दों पर गुस्सा कर रहे हैं, लेकिन कुछ समय बाद यही लोग फिर से बड़े सेलिब्रिटी बन जाएंगे, जैसे पहले भी हो चुका है. जब बॉलीवुड के सबसे बड़े सितारे और निर्देशक स्टेज पर खड़े होकर यही सब कर रहे थे, तब देश के टॉप उद्योगपति, खिलाड़ी, लेखक कलाकार बैठकर हंस रहे थे, क्योंकि सबको ‘कूल' दिखना था. आज के हिप-हॉप, भोजपुरी गानों, लोकगीतों और यहां तक कि धार्मिक गानों तक में जो कुछ हो रहा है, क्या आपने उसे देखा है? क्या आपको सिर्फ तब ही गुस्सा आता है, जब कोई चीज ट्रेंड करने लगती है? क्या आप गारंटी ले सकते हैं कि इस पूरे स्टैंड-अप कॉमेडियन विवाद के पीछे कोई सोशल मीडिया एजेंसी नहीं है? क्या यह अपने आप में एक सुनियोजित अभियान नहीं हो सकता?”

पेरेंट्स को आगाह करते हुए उन्होंने आगे कहा, “आपको यह कैसे पता कि अगले दो महीनों में कोई और बड़ा मुद्दा नहीं उछाला जाएगा और इसके पीछे किसकी मंशा होगी? इसलिए, अपने बच्चे को मोबाइल देने से पहले सौ बार सोचिए.”



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